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पुलिस अभिरक्षा

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 15-Dec-2023

"संसद सुरक्षा उल्लंघन के चार आरोपियों को सात दिन की पुलिस अभिरक्षा में भेज दिया गया है।"

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हरदीप कौर

स्रोतः पटियाला हाउस कोर्ट

चर्चा में क्यों?

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हरदीप कौर ने संसद सुरक्षा उल्लंघन के चारों आरोपियों को सात दिन की पुलिस अभिरक्षा में भेज दिया है।

इस मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • 2001 के संसद में हुए आतंकवादी हमले की वर्षगाँठ पर एक बड़े सुरक्षा उल्लंघन में, दो व्यक्ति दर्शक दीर्घा/पब्लिक गैलरी से लोकसभा के चैंबर में कूद गए, जब 'शून्य काल' (Zero Hour) चल रहा था।
  • दोनों को पीले रंग की गैस छोड़ने वाले कनस्तरों को पकड़े हुए देखा गया, वे नारे भी लगा रहे थे। हालाँकि उन्हें कुछ संसद सदस्यों (सांसदों) द्वारा नियंत्रित किया गया था।
  • इस मामले में भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860- IPC) और गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के विभिन्न अपराधों के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report- FIR) दर्ज की गई है।

न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?

  • पटियाला हाउस कोर्ट ने कहा है कि 'संसद पर सुनियोजित हमले' की साज़िश का पर्दाफाश करने के लिये पुलिस अभिरक्षा की आवश्यकता है तथा अन्य देशों और अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ उनके संबंध को भी देखा जाना चाहिये।
  • हालाँकि, न्यायालय ने सात दिनों की पुलिस रिमांड/प्रतिप्रेषण दी और कहा कि इसे बढ़ाया जा सकता है।

'पुलिस अभिरक्षा' क्या है?

  • अर्थ:
    • जब किसी व्यक्ति को जघन्य अपराध करने के आरोप में या संदेह के आधार पर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे पुलिस अभिरक्षा में रखा जाता है। किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने का नियम आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code, 1973- CrPC) की धारा 167 के तहत दिया गया है।
    • इस धारा के अनुसार, जब आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है और उसे लगता है कि आगे की जाँच या पूछताछ की ज़रूरत है, तो वह उस व्यक्ति को अगले 15 दिनों के लिये पुलिस अभिरक्षा में रखने का आदेश दे सकता है, जिसे प्रत्येक मामले की प्रकृति, गंभीरता और परिस्थितियों के आधार पर कुछ मामलों में 30 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
    • मजिस्ट्रेट को धारा 167 के तहत किसी व्यक्ति को पुलिस अभिरक्षा में भेजने की शक्ति दी गई है।
    • वह अभिरक्षा को पुलिस अभिरक्षा से न्यायिक अभिरक्षा में परिवर्तित करने का आदेश भी दे सकता है। ऐसी स्थिति में पुलिस अभिरक्षा की समय अवधि को न्यायिक अभिरक्षा की कुल समय अवधि से घटा दिया जाता है।
  • निर्णयज विधि:
    • राज्य बनाम धर्मपाल (1982):
      • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति को CrPC की धारा 167 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किये जाने की तारीख से 15 दिनों के भीतर पुलिस अभिरक्षा में भेजा जाना चाहिये, लेकिन यदि आरोपी न्यायिक अभिरक्षा में है, तो उसे 15 दिनों में या उसके बाद भी कारावास भेजा जा सकता है।
    • मीठाभाई पाशाभाई पटेल बनाम गुजरात राज्य (2009):
      • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि किसी आरोपी को ज़मानत मिल गई है तो उसे तब तक पुलिस अभिरक्षा में नहीं लिया जा सकता जब तक कि उसकी ज़मानत रद्द न कर दी जाए।